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लोकसभा चुनाव में डीपफेक का साया! नेता, दल और वोटर्स के सामने बड़ी चुनौती

डीपफेक एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसके जरिए किसी की भी तस्वीर या वीडियो में कुछ बदलाव करके उसे किसी और की तरह हू-ब-हू बात करते या बोलते दिखाया जा सकता है. यह असली जैसा लगता है. इस बार लोकसभा चुनाव में ऐसी ही डीपफेक टेक्नोलॉजी का साया है.

चुनाव में डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर राजनेताओं के भी वीडियो बनाए जा रहे हैं जो अब इस दुनिया में नही हैं. हाल ही में DMK पार्टी के दिवंगत नेता एम करुणानिधि का वीडियो एक बड़े पर्दे पर आया है. इस वीडियो में करुणानिधि के पूरे अंदाज को कॉपी किया गया है. वीडियो में करुणानिधि को ट्रेडमार्क काला चश्मा, सफेद शर्ट और गले में पीले शॉल में दिखाया गया है.

वीडियो में करुणानिधि को 8 मिनट के भाषण के साथ दिखाया गया है. इसके साथ ही टीआर बालू की आत्मकथा लॉन्च होने पर बधाई दी गई है. करुणानिधि के वीडियो का इस्तेमाल तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के काबिल नेतृत्व की तारीफ करने में भी की गई है. बता दें कि करुणानिधि का साल 2018 में ही निधन हो चुका है.

राजनीतिक दलों को मिल गया नया हथियार!

चुनाव में प्रचार के लिए राजनीतिक दल लगातार रैलियां और जनसभाएं कर रहे हैं. अब उन्हें एक नया हथियार भी मिल गया है. ये है- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता. फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक दल एआई की मदद से बने फोटो और वीडियो शेयर कर रहे हैं. इनका मकसद अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की तारीफ करना, विरोधियों का मजाक उड़ाना या वोटरों तक सीधे मैसेज पहुंचाना हो सकता है.

चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस समेत लगभग हर राजनीतिक दल ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर कम से कम चार बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जरिए बनी हुई फोटो या वीडियो शेयर की है. इन बदले हुए फोटो या वीडियो को आम बोलचाल में ‘डीपफेक’ कहा जाता है.

एआई की मदद से किसी भी नेता की हूबहू आवाज की नकल की जा सकती है, ऐसे में नेता चुनाव में वोटर्स को रिझाने के लिए वॉइस क्लोनिंग टूल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. अभी तक चुनाव के वक्त हमें रिकॉर्डेड मैसेज वाले फोन आते थे, जिनमें कोई नेता वोट मांगता था. ये सब जानते हैं. लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से कॉल की शुरुआत में ही आपका सीधे नाम लेकर भी संबोधित किया जा सकता है. ये चुनाव प्रचार को और ज्यादा निजी बना सकता है.

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