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कूर्म जंयती मई में कब है ? ये क्यों मनाई जाती है क्या है इसका महत्व ? जानें

भगवान विष्णु दशावतार (Dashavatar) माने जाते हैं. भगवद गीता में लिखा है कि जब जब धरती पर पाप बढ़ा तब अधर्म के नाथ और धर्म की पुन: स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने अवतार लिए.

इन्हीं में एक था विष्णु जी का कूर्म अवतार (Kurma avatar). कूर्म यानी श्रीहरि ने कछुआ (Tortoise) बनकर संसार की रक्षा की थी. हर साल वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh purnima 2024) पर कूर्म जयंती मनाई जाती है. इस साल 2024 में कूर्म जयंती कब है, आइए जानते हैं डेट और पूजा मुहूर्त और इस पर्व का महत्व.

कूर्म जयंती 2024 डेट (Kurma Jayanti 2024 Date)

कूर्म जयंती 23 मई 2024 को मनाई जाएगी. इस दिन गुरुवार भी है,जो भगवान विष्णु का दिन माना जाता है, ऐसे में इस पर्व का महत्व दोगुना हो गया है. कूर्म जयंती पर श्रीहरि की पूजा शाम के समय की जाती है.

कूर्म जयंती 2024 मुहूर्त (Kurma Jayanti 2024 Time)

पंचांग के अनुसार वैशाख पूर्णिमा 22 मई 2024 को शाम 06 बजकर 47 मिनट पर शुरू होगी और 23 मई 2024 को रात 07 बजकर 22 मिनट पर इसका समापन होगा.

  • कूर्म जयंती पूजा मुहूर्त –  शाम 04.25 – रात 07.10
  • अवधि 2 घटें 45 मिनट

क्यों मनाई जाती है कूर्म जयंती ? (Kurma Jayanti Significance)

  • अलग-अलग पुराणों में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के बारे में जिक्र हुआ है. लिंग पुराण के अनुसार पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छप रूप में अवतार लिया और पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया था.
  • वहीं पद्म पुराण में बताया गया है कि समुद्र मंथन के दौरान जब मंदराचल पर्वत ताल में धंसने लगा तो भगवान विष्णु ने कछुए का रूप लिया और उसे अपनी पीठ पर संभाला. कूर्म जयंती पर ‌विष्णु जी के कच्छप अवतार की पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.

कूर्म अवतार की कथा (Kurma Jayanti Katha)

नरसिंह पुराण के अनुसार कूर्मावतार भगवान विष्णु के दूसरे अवतार हैं जबकि भागवत पुराण के अनुसार ये विष्णुजी के ग्यारहवें अवतार हैं. पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा (Rishi Durvasa) को इंद्र पर क्रोध आ गया और उन्होंने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप देकर उनकी सुख-समृद्धि खत्म कर दी थी. लक्ष्मी जी समुद्र में लुप्त हो गईं. तब इंद्र भगवान विष्णु (Vishnu ji) के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन (Samudra manthan) करने के लिए तैयार हो गए.

मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत (Mandarchal Parvat) को मथानी एवं नागराज वासुकि (Vasuki naag) को रस्सी बनाया गाय है लेकिन मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डुबने लगा. यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए. उस दिन वैशाख माह की पूर्णिमा थी. इसके बाद मंथन संपन्न हुआ.

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