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सुप्रीम कोर्ट की पीएमएलए मामले में सख़्त टिप्पणी- ज़मानत देना नियम और जेल भेजना अपवाद

सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसले में कहा है कि पीएमएलए यानी मनी लॉन्ड्रिंग पर रोकथाम वाले क़ानून के मामले में ज़मानत देना नियम है, जबकि ऐसे मामलों में जेल भेजना अपवाद होता है.

बुधवार को प्रेम प्रकाश को ज़मानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की. प्रेम प्रकाश पर आरोप है कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में वे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरन के सहयोगी हैं.

एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस की नेता के कविता को भी ज़मानत दी है. के कविता को दिल्ली सरकार की शराब नीति से जुड़े कथित घोटाले में गिरफ़्तार किया गया था.

उन पर भी पीएमएलए के तहत मामला दर्ज किया गया था. जबकि इसी महीने दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भी ज़मानत मिली है.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की एक बेंच ने ये फैसला सुनाया.

लाइवलॉ के अनुसार बेंच ने कहा कि पीएमएल की धारा 45 केवल यह बताती है कि ज़मानत की शर्त दो स्थितियों पर निर्भर है और ज़मानत के बुनियादी सिद्धांत को नहीं बदलती.

जस्टिस विश्वनाथन ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा, “पीएमएलए केस में भी बेल एक नियम है और जेल अपवाद है.”

फ़ैसले के अनुसार, “पीएमएलए की धारा 45 में सिर्फ़ कुछ शर्तों को निर्धारित करने के लिए कहा गया है. बेल नियम और जेल अपवाद का सिद्धांत, संविधान के अनुच्छेद 21 की सिर्फ़ व्याख्या है जो कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी ज़िंदगी और व्यक्तिगत आज़ादी से महरूम नहीं किया जा सकता, सिवाय क़ानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के.”

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा, “व्यक्ति की आज़ादी हमेशा नियम है और उसे छीनना अपवाद. आज़ादी से महरूम केवल स्थापित उन क़ानूनी प्रक्रियाओं के द्वारा ही किया जा सकता है जो वैध और तर्कसंगत हों.”

याचिकाकर्ता की ज़मानत से इनकार किए जाने के झारखंड हाई कोर्ट के फ़ैसले को सर्वोच्च अदालत ने पलट दिया.

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