दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार का आज आखिरी दिन है और शाम छह बजे प्रचार का शोर थम जाएगा. अरविंद केजरीवाल सितंबर में सीएम पद आतिशी को सौंपकर मिशन-दिल्ली में लग गए थे. केजरीवाल साढ़े चार महीने से लगातार दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जाकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में सियासी माहौल बनाने की कवायद करते रहे, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाके से दूरी बनाए रखी. दिल्ली की किसी मुस्लिम सीट पर केजरीवाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं उतरे, जहां से आम आदमी पार्टी के मुस्लिम कैंडिडेट किस्मत आजमा रहे हैं.
दिल्ली में करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. दिल्ली की कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल माना जाती हैं. केजरीवाल ने दिल्ली की बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद और मटिया महल सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. इन सीटों पर 45 से 60 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. तीन सीटों पर आम आदमी पार्टी की कांग्रेस से सीधी टक्कर मानी जा रही है, तो मुस्तफाबाद और ओखला सीट पर AIMIM के चलते त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार मुस्लिम बहुल इलाके में तब्लीगी जमात के मरकज और दिल्ली दंगे के मुद्दे की गूंज सुनाई दे रही है. कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठा रही है. ये दोनों ही सियासी मुद्दे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए मुस्लिम बहुल सीटों पर सियासी टेंशन बढ़ाते नजर आ रहे हैं. आम आदमी पार्टी के सभी पांचों मुस्लिम प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पांचों मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव लड़ रहे हैं. ओवैसी के दो मुस्लिम उम्मीदवार होने के चलते दो सीटों पर तीन प्रमुख दलों से मुस्लिम हैं, जबकि बीजेपी ने इस बार किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. दिल्ली की 5 सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता किसी एक दल के पक्ष में एकतरफा वोटिंग वाली परंपरा से इस बार दूर दिख रहा है.
कांग्रेस और ओवैसी की घेराबंदी के बाद भी केजरीवाल मुस्लिम इलाके में खुद नहीं उतरे हैं, जिसके चलते मुस्लिम बहुल सीटें जीतने के लिए आम आदमी पार्टी के नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही. मुस्लिम बहुल सीटों पर केजरीवाल की दूरी बनाए जाने के चलते आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को राज्यसभा सांसद संजय सिंह की रैलियों से संतोष करना पड़ा है. इसके अलावा सपा के नेताओं का प्रचार के लिए आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने सहयोग लिया है.
दिल्ली विधानसभा का अभी तक का यह पहला ऐसा चुनाव हो रहा है, जिसमें राजधानी के मुस्लिम मतदाता राजनीतिक दलों के मुद्दे और उनके प्रत्याशियों की ओर देख रहे हैं. दिल्ली दंगों के दौरान आम आदमी पार्टी के रवैये और उसकी बदलती राजनीतिक विचारधारा इसकी एक बड़ी वजह है. कोरोना के दौर में तब्लीगी जमात और दिल्ली दंगे के दौरान आम आदमी पार्टी के रवैये से मुस्लिम मतदाता केजरीवाल से नाराज दिख रहा है.