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हरतालिका तीज पर जरूर सुनें ये कथा, नहीं तो अधूरी रह…

हरतालिका तीज का व्रत सुहागिनें पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. माता पार्वती ने ये व्रत शिव जी (Shiv ji) को पति के रूप में पाने के लिए किया था. माना जाता है कि इस कठिन व्रत को करने वाली स्त्रियों को अखंड सौभाग्य और मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है.

हरतालिका तीज इस साल 6 सितंबर 2024 को है. इस दिन पूजा में हरतालिका तीज की व्रत कथा जरुर सुनें या पढ़ें. इसके बिना पूजन अधूरा माना जाता है.

हरतालिका तीज की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने शिव जी से पूछा कि किस व्रत, तप या दान के पुण्य फल से आप मुझको वर रूप में मिले ? इस पर भोलेनाथ ने कहा हे पार्वतीजी! आपने बाल्यकाल में उसी स्थान हिमालय पर्वत पर तप किया था और बारह वर्ष तक के महीने में जल में रहकर तथा बैशाख मास में अग्नि में प्रवेश करके तप किया.

सावन के महीने में बाहर खुले में निवास कर अन्न त्याग कर तप करती रहीं. आपके उस कष्ट को देखक पिता हिमालय राज को बड़ी चिंता हुई. वह आपके विवाह के लिए चिंतित थे. एक दिन नारादजी वहां आए और देवर्षि नारद ने आपको यानि शैलपुत्री को देखा.

नारद जी ने राजा हिमालय से कहा ब्रह्मा, इंद्र, शिव आदि देवताओं में विष्णु भगवान के समान कोई भी उत्तम नहीं है, इसलिए मेरे मत से आप अपनी कन्या का दान भगवान विष्णु को ही दें. राजा ने भी अपनी पुत्री के लिए विष्णु जी जैसा वर पाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. हिमालय ने पार्वतीजी से प्रसन्नता पूर्वक कहा- हे पुत्री मैंने तुमको गरुड़ध्वज भगवान विष्णु को अर्पण कर दिया है.

पिता की बात सुनकर पार्वतीजी दुखी होकर अपनी सहेली के घर गईं और पृथ्वी पर गिरकर अत्यंत विलाप करने लगीं. सहेलियों के पूछने पर पार्वती जी ने कहा मैं महादेवजी को वरण करना चाहती हूं, लेकिन पिता जी ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित किया है, इसलिये मैं निसंदेह इस शरीर का त्याग करुंगी. पार्वती के इन वचनों को सुनकर पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थीं, ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें.

जंगल में अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया. हे देवी तुम्हारे उस महाव्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा, आपके तप से मैं प्रसन्न हुआ और वरदान में आपने मुझसे विवाह की इच्छा जाहिर की. शिव ने भी पत्नी के रूप में माता पार्वती को स्वीकार कर लिया. इसलिए हर साल महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए इस व्रत को करती हैं.

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