बस्ती और सिद्धार्थनगर में 200 से अधिक फर्जी किसानों के नाम की खतौनी के नाम पर सरकारी धन की लूट करने वाले एक साथ दस सचिवों के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम और धारा 409 के तहत मुकदमा दर्ज होने से पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया है. अभी लगभग तीन दर्जन सचिवों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चुका है. नियमानुसार अगर धान का गबन होता है, तो इसके लिए सिर्फ सचिव ही जिम्मेदार नहीं होते, एआर, डीआर, पीसीएफ के आरएम, डीएस, डिप्टी आरएमओ के साथ डीएम और एडीएम भी होते है. कमिश्नर अखिलेश सिंह की सख्ती के बाद ये कार्रवाई हुई है.
जिन सचिवों के खिलाफ एक करोड़ 35 लाख के धान के गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ है, उनमें सबसे अधिक गबन ठाकुरपुर के सचिव सुदीप सिंह ने 46.99 लाख का गबन किया. भैसहां के सचिव सोनू गुप्त ने 9.81 लाख का गबन किया, षंकरपुर के सचिव राजकुमार दूबे ने 17.35 लाख, रामगढ़ खास के दधिचि सिंह ने 14.77 लाख का गबन पचवस के सचिव धनष्याम वर्मा ने दूसरा सबसे बड़ा 30.23 लाख का गबन किया.
सचिवों के खिलाफ डीएम ने दर्ज कराया मुकदमा
इन सभी लोगों के खिलाफ कमिश्नर के आदेश पर डीएम ने मुकदमा दर्ज करवाया है. सहकारी संघ चिलमा परसन के अध्यक्ष बाबूराम सिंह जिले के पहले ऐसे चेयरमैन थे जिन्होंने अपने ही क्रय प्रभारी रामप्रीत यादव के खिलाफ 15.88 लाख के गबन के आरोप में मुकदमा दुबौलिया थाने में दर्ज करवाया. अपने क्रय प्रभारियों के खिलाफ अभी तक अन्य समिति के चेयरमैन ने चिलमा परसन जैसे अध्यक्ष की तरह हिम्मत नहीं दिखाया. इससे पता चलता है, कि धान घोटाले में इन लोगों की भी कहीं ना कहीं भूमिका अवश्य है.
गौरतलब है कि आज जितने भी सचिव के खिलाफ गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज हो रहे हैं, वे डीएस के कारण हो रहे है. लोग सवाल करते हैं, कि जब धान मील तक पहुंचा नहीं तो डीएस ने कैसे भुगतान कर दिया. कहते हैं आज इन्हीं के भ्रष्टाचार का परिणाम हैं, कि सचिवों को जेल जाना पड़ रहा हैं. असल में मुकदमा तो डीएस के खिलाफ भी दर्ज होना चाहिए, जब तक डीएस के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं होगा, घोटाला नहीं रुकेगा. पिछले कई साल से इसी तर्ज पर घोटाले की रेलगाड़ी चली आ रही थी, मगर अब इस पूरे स्कैम से पर्दा हट गया है. भ्रष्टाचारियों पर ताबड़तोड़ कार्यवाही शुरू हो गई है.