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अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस:जानिए वाजिद अली शाह की कृष्णमयी रासलीला, कथक-कलाकारी और काल यात्रा – International Dance Day 2023, Nawab Wajid Ali Shah A True Patron Of Kathak

अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस 2023
– फोटो : Maya Kulshrestha

विस्तार

कथा गए सो कथित कहलावे। नृत्य की यात्रा बड़ी दिलचस्प रही है। हर युग ने कुछ नया अपनाया और एक सुंदर सरल रूप लिया नृत्य ने। नृत्य यात्रा की पहली कड़ी में बात कथक नृत्य की। इसका जन्म उत्तर भारत में हुआ कहा जाता है। महाभारत, रामायण और हमारे धार्मिक ग्रंथ को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य के लिए यह बढ़ता रहा है। उस समय लोग इतने पढ़े लिखे नहीं होते थे और न ही टीवी और जनसंचार के माध्यम होते थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि भगवान राम के बेटे लव- कुश ने उनके सामने उनके ही चरित को गाकर और नृत्य करते हुए प्रस्तुत किया था।

आज भी हंडिया गांव (प्रयागराज) जिले में वही परंपरागत कथाकार मिलते हैं। मंदिरों से शुरू हुआ कथक नृत्य दरबारों के गलियारों तक पहुंचा और अब उसके बाद जन-जन तक इसकी यात्रा रही। वैसे तो यह कहना कि नृत्य कब से जीवन में है या इसको पहली बार किसने किया, असंभव सा है पर कहा जाता है कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में निकाली गई मूर्तियां जिन मुद्राओं में हैं, वे कथक की मुद्राओं जैसी है।

समय चक्र और कथक

जिस तरह से मनुष्य ने बैलगाड़ी से हवाई जहाज का सफर तय किया है उसी तरह से कथक नृत्य ने भी एक सफर तय किया। प्रागैतिहासिक काल की गुफाओं में चट्टानों में जो आकृति पाई जाती है वह हड़प्पा की संस्कृति में मिली हुई मूर्तियों की आकृतियों से मिलती-जुलती है। वैदिक काल भारतीय संस्कृति के अनुसार वेद रूप है उनका प्राकट्य भी मानव जीवन के साथ हुआ है।

वैदिक सभ्यता व संस्कृति के संबंध में जिस समन का उल्लेख सार्वजनिक होता है, वह समन प्रोफेसर पेशेल के अनुसार नृत्य के मेले आयोजित किए जाते थे। नागरिक मृदंग की धुन पर नाचते थे जो फिर समान है कथक के प्रकार से, क्योंकि कथक रामायण काल में भी था, महाभारत में भी इसका साक्ष्य चित्र एवं इनका उल्लेख मिलता है।

900 वर्ष पूर्व मुगल काल में कथक एक साधना की जगह मनोरंजन का साधन बन गया था। दरबारों में पहुंचने के साथ ही मुगल काल में यह अरब, ईरान के नाच और संगीत की पद्धति से प्रभावित किया जाने लगा।

मादक पदार्थ लेकर नृत्य करना, कांच के टुकड़ों पर नृत्य करना, न करने पर कोड़ों की सजा मिलना, नर्तकों को इस तरह की यातनाएं मुगल काल में मिलने लगी और वेशभूषा में भी अंतर आया। मंदिरों में होने वाला नृत्य बहुत ही सादे से वेशभूषा में किया जाता था, वहीं पर इस काल में इनकी वेशभूषा बहुत भड़काऊ की गई। रंग बिरंगी झिलमिल पोशाकें बनाई जाने लगी और शायद यही सब देख कर कथाकाचार्य नृत्य सिखाना, प्रदर्शन करना बंद करने लगे।

लोग डर के घरों में छुपने लगे। धीरे-धीरे कथक नृत्य लुप्त होता जा रहा था। फिर, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने कथक के लिए बहुत काम किया। कलाकारों के लिए कथक के लिए काफी पुस्तकों की रचना की जिसमें से बन्नी काफी प्रसिद्ध है।

लखनऊ से कथक का नया उत्थान

कथक गुरुओं और लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने मिलकर इसके उत्थान का काम किया। उन्होंने अपनी रचनाएं लिखी जो कृष्ण पर आधारित थीं। स्वयं वाजिद अली शाह भी कृष्ण बनकर रास करते थे। उन अनुभूतियों को लिखते थे और महाराज बिंदादिन द्वारा उनको नृत्य के रूप में संजोया जाता था।

वाजिद अली शाह ने ऐसे लोगों को अपने महल में रखा जो कि नृत्य की शिक्षा ले रहे थे या गुरु थे और उनको आगे की शिक्षा-दीक्षा एवं दरबार में प्रदर्शन के मौके दिए। कथक नृत्य मंदिरों में था तो वह भजन और भक्ति संगीत और कथाओं पर ही आधारित रहा। जब ये मुगल दरबार में आया तो वाजिद अली शाह द्वारा रचित महाराज बिंदादिन द्वारा रचित ठुमरियों और गजलों का भी आयाम कथक से जुड़ा। और, यहीं से शुरू होता है घरानों का समय।

 

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