राजनीति में किसी भी सियासी बयान के पीछे कोई न कोई सियासी संदेश जरूर होता है. जब बीते दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था तब जमकर उसपर चर्चा हुई और कयास लगाए गए. यह बयान सीएम योगी ने अपने वाराणसी दौरे पर दिया था. तब उसका मुख्यमंत्री के बयान के कई मायने निकाले गए थे.
दरअसल, सीएम योगी ने कहा था, ‘कोई संत, महात्मा और योगी कभी भी सत्ता का गुलाम नहीं हो सकता. बल्कि वह अपने कदमों पर समाज को चलने के लिए प्रेरित करता है. यही कार्य बाबा कीनाराम ने चार सौ पच्चीस वर्ष पहले जन्म लेकर दिव्य साधना के माध्यम से सबके सामने प्रस्तुत किया था.’
मुख्यमंत्री के इतना कहते ही राजनीति का बाजार गर्म हो गया और सियासत को समझने वाले इसका अपनी-अपनी तरह से मतलब निकालने लगे. राजनीति के जानकारों ने इस मुद्दे पर अपनी बातों को दो रह से रखा. पहला, विपक्षी दलों के नेताओं जैसे- समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को संदेश के तौर पर था.
बीजेपी के नेताओं को भी संदेश?
दूसरा, बीजेपी और सरकार के कुछ नेताओं के लिए भी इस बयान को संदेश के तौर पर समझा पाया गया. तब लोकसभा चुनाव के बाद सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच तनातनी का दावा कई मीडिया रिपोर्टस में किया गया. हालांकि बाद में स्थिति सामान्य हो गई लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में सीएम योगी को हटाने तक का दावा किया गया था.
हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन अब सियासत के जानकारी इसे बीते दिनों के घटनाक्रम से जोड़कर देख रहे हैं. जबकि कुछ जानकार अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के बयानों के बाद उन्हें जवाब के तौर पर इस बयान को देख रहे हैं. इसे समझने के लिए हमें लोकसभा चुनाव के समय हुई सियासी बयानबाजी को समझना होगा.